मुक्तिबोध (आत्मा का भ्रमण )

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MuktiBodh_Part70


हम पढ़ रहे है पुस्तक " मुक्तिबोध "

पृष्ठ संख्या (132-134)



शब्द = हाथ, बरंर = भँवरा, जो काला भूंड जैसा होता है। फूलों पर बैठकर सुगंध लेता है। बेली = बेल यानि लता, पुहुप = पुष्प, फूल, पग = पैर, पंथ = मार्ग, चोनर = चंवर जो गाय की दुम जैसे बालों वाला होता है जो संतों और शिग्रंथों के ऊपर हाथ रखा जाता है:

है। वह सतलोक में बिना हाथ के अपने आप चलता रहता है। आसन = बैठने के लिए कपड़ा, गद्दा या कुर्सी को आसन कहते हैं। सतलोक में बिना जीभ के भी बोल सकते हैं जैसे आकाशवाणी होती है। मंदिर = महल, देहरा = देवालय जिसमें भगवान रहते हैं। इन संपत्तियों में सतलोक में अनहोनी लीलाओं का ज्ञान है। वैसे ही पर स्थाई मकान हैं, बाग हैं, झरने बहते हैं। अंग = शरीर जो पाँच तत्व का है, वह नहीं है। वहाँ अनूप यानि

विचित्रा शरीर है। दृष्टि = नजर, मुश्ती = विशेष ध्यान से देखने की कोशिश, दृष्टि तो सामान्य नजर होती है। जो नजर गड़ाकर ध्यान से देखें, वह मुशी कही जाती है।

रहत = बिना, सेव = पूजा। भावार्थ है कि उस परमात्मा को आत्मा की आँखों से देखा जाता है, चर्म दृष्टि से नहीं। दुरमति = संत नियत से किया गया विचार, मंजरी = बिल्ली, सुवा = तोता = शुक, पिंजर = जाति।] भावार्थ है कि तोता अपने पिंजरे में रहता है 

उसको बिल्ली नहीं खा सकती। दुरमति तो बिल्ली है, आत्मा तोता ने कहा है। यदि मृत्युलेख में बनेकर भक्त चलता है तो उस पर किसी के दुर्विचारों का प्रभाव नहीं पड़ता है। (23 से 27)


◆ उड़न-पतनन यानि चंचलता को छोड़कर वास्तविक भक्ति मार्ग को पहचानकर उसी अनुसार सदना कर। अपने दिल से पूर्व के कुविचार निकाल कर सत्य भाव से सत्य साधना कर रहे हैं। अपने ध्यान (सुरति) को शब्द यानि नाम जाप पर लगाया रख। (28) काड = निकाल।


◆ संत गरीब दास जी ने प्रश्न-उत्तर से ज्ञान निर्दिष्ट किया है। प्रश्न किया है कि काल कौन से कमल चक्र मे है और जीव कौन से कमल में विश्राम करता है? (29)


◆ उत्तर दिया गया है कि कण्ठ कमल और पोस्टल्रास कमल में दुर्गा जो काल की पत्नी है और काल ब्रह्म रहता है। दोनों का एक ही उद्देश्य है। इसलिए ये दोनों काल स्वरूप हैं जो जीव को फँसाए हुए हैं। हृदय कमल में यानि शिव के लोक का कार्यक्रम जिस कमल (एसएम) में दिखाई देता है, वह हृदय कमल है। उसी में भगवान जी का मिनी सतलोक वाला कार्यक्रम एक कोने में दिखाई देता है, शंख कमल वहाँ दृष्टिगोचर होता है। वही दिल

कमल में जीव रहता है। अचर कमल में विश्राम जीव करता है। अष्ट कमल का यहाँ भावार्थ है कि नाभि कमल जिसका आठ पंखुडिआयँ हैं, इसे भी अष्ट कमल दलित हैं। सोते समय जीव अख्त कमल में रहता है। इस प्रकार प्रश्न-उत्तर में ज्ञान स्पष्ट किया गया है। (30)


ं वाणी नं। 31 से 45: -

गरीब, कौन कंवल अनभै उठें, कौन कंवल घर था। 

कौन कंवल में बोलिये, कौन कंवल जल नीर।।31 ।।

गरीब, मूल कंवल अनभै उठें, सहंस कमल घर था। 

कंठ कंवल में बोलिये, त्रिकुटी कंवल जल नीर।।32 ।।

गरीब, जहाँ बिंद की संधि है, जहाँ नाड़ी की नीम। 

कहां बजरी का द्वार है, कहां अमेरिका की सीम।।33 ।।

गरीब, त्रिकुटी बिंद की संधि है, नाभि नाड़ी नीम। 

गुदा कंवल बजरी कही, मूलिही अमेरिकी सीम।।34 ।।

गरीब, जहाँ भँवर का बास है, कहा भँवर का बाग। 

कौन भँवर का रूप है, कौन भँवर का राग।।35 ।।

गरीब, हिरदे भँवर का बास है, सहंस कंवल दल बाग। 

उदयल हिरबार रूप है, अनहद अबिगत राग।।36 ।।

गरीब, निस वासरी कै जागनै, हासिल बड़ा नरेस। 

नाम बंदगी चित्तौ, हरि रहना पेसू।।37 ।।

गरीब, सुरती सिंहासन लाईये, निरभय धूनी अखंड। 

चित्रगुप्त पूछें नहीं, जम का मिटि है दंड।।38 ।।

गरीब, ऐसा सुमरन करें, रोम रोम धुनि ध्यान। 

आठ बख्त अधिकार करि, पतिब्रत सो जान।।39 ।।

गरीब, तारक मंत्र चित्त दर्शन, सूखे मंत्र का सार। 

अजपा जाप अनादि है, हंस उतरि है पार।।४० ।।

गरीब, अंजन मंजन करें, कुल करे करि दूर। 

साहेब सेती हिलमिलौ, रह्या सकल खूब।।41 ।।

गरीब, हरदम मुजरा करो, तुम्हे तत्त बारंबार। 

कुबुधि कटे कांजी मिटे, घना नामी घनसार।।42 ।।

गरीब, अजब हजारा पुहुप है, निहगंडी गलत। 

पाँच तत्त नाहीं जहाँ, निरभय पद प्रवान।।43 ।।

गरीब, सत पुरुष साहेब धनी, सो अकाल अमान है। 

पूर्ण ब्रह्म कबीर का पाया हम अस्थान।।44 ।।

गरीब, नेस निरंतर रमि रह्या, प्रकट क्या दिखल। 

दास गरीब अधर्म पद, सहजै रह्या समाइ।।45 ।।


◆ सरलार्थ: - संत गरीब दास जी ने प्रश्न-उत्तर द्वारा शरीर के अंदर का अंतर बताया है। मूल कमल से अनभै यानि अनुभव की वाणी निकल कर जीहना पर आती है। जब तक जीव भगवान कबीर जी की शरण में नहीं आते, तब तक उसका अंतिम ठिकाना मुद्र्रास कमल है यानि काल जाल में ही रहता है। वह उसी को वा यानि स्थाई मानता है। कंठ कमल जीव को बोलने में सहयोग देता है। त्रिकुटी कमल से दुःख और प्रेम के आँसू निकलते हैं। बद यानि बीज शक्ति (शुक्राणु) त्रिकुटी से नीचे स्वाद चक्र में आते हैं। फिर महिला के गर्भ में पुरुष द्वारा जाते हैं। उस शुक्राणु को स्वाद कमल में भेजने में नाड़ी सहयोगी है। वह नाभि कमल में संलग्न है। गुदा कमल (स्वाद कमल) में बजरी यानि वीर्य है और मूल

कमल में अमेरिकी यानि सिद्धि शक्ति है। (31.34)


◆ भँवर का यहाँ भाव जीव से है। जैसा भवंर = भवंरा होता है जो फूलों की सुगंध लेता है फिरता है, (काले रंग का भूंड) लेकिन इस वाणी में उपमा अलंकार है। भँवर का भावार्थ जीव से ही है। बताया गया है कि जब तक जीव मुक्त नहीं होता, तब तक शरीर में हृदय कमल में जीव रहता है। जागृत अवस्था में और उसका अंतिम ठिकाना काल ब्रह्म का सहस्र कमल ही है। वही उसका बाग है, उसी की वासना में अंधा विषयों के रूप में डूबा रहता है। जीव जो भक्ति करता है, उसका रूप उज्जवल स्वर्ण की तरह होता है वह परमात्मा की भक्ति अनहद (निरंतर) करता है।) यही उसका राग यानि विलाप रूप गाता है। (35-36)


◆ निस (निशा = रात्रि) और वासर (दिन) जागते रहना चाहिए यानि भक्ति भजन में गफलत नहीं चाहिए। इससे भक्ति का नरेश यानि भक्त राजा कहलाएगा। उसे यह हासिल करना यानि हासिल करना होगा। 

'' गरीब कक्ष-कक्ष धुन लेत है छत्रपती है सोय '' जो भक्त साधना करता है और कक्ष (शरीर के बाल) भी खड़े हो जाते हैं तो वह भक्त राज है। परमात्मा के

नाम की बंदगी नम्रभाव से भक्ति हृदय में। सद् मालिक के लिए समर्पित रहना।

परमात्मा के दरबार में पेसो (बिक्री) रहना। भावार्थ है कि परमात्मा के अतिरिक्त अन्य सभी आसार लगे हुए हैं। (37)


◆ संत गरीब दास जी ने कहा है कि हे भक्त! नाम जाप में ध्यान (सुरति) जैसे लगा जैसे सिंहासन पर बैठकर शोभित होते हैं यानि राजा लोग सिंहासन पर बैठकर अपने को ताजपरि और निर्भय समझते हैं। ऐसे भक्त परमात्मा के नाम का जाप ध्यान यानि सुरति रूपी सिंहासन पर बैठकर करे। वह अभिनय भक्ति विधि है और निर्भय हो जा रहा है कि मैं सत्य भक्ति कर रहा हूँ, मुझे परमात्मा अवश्य मिलेगा। उस साधक का लेखा-जोखा चित्रा और गुप्त फरिश्ते नहीं करते। उस भक्त का जम यानि यमदूतों द्वारा पाप कर्म का दिया जाने वाला दण्ड भी समाप्त हो जाता है।) (38)


◆ भक्त को कहा है कि ऐसा सुमरन (स्मरण) कर जिससे रोम-रोम में धुन हो यानि शरीर के बाल ऐसे खड़े हो जाऐं जैसे कि खुशी या भय के समय खड़े होते हैं। कहते हैं कि इस तरह के

दुर्घटना थी कि देखने वाले के रोंगटे (शरीर के बाल) खड़े हो जाते थे। अपने भजन पर आठ पहर (24 घण्टे) अधिकार रखते हुए यानि स्मरण में डाल दिया गया। वह वास्तव में पतिव्रता यानि सच्चा भक्त है। (39)


◆ जो तारक मंत्र है यानि सत्य साधना के मंत्रा को चित्त धरो यानि ध्यान से स्मरण करो जो सुमन मंत्र यानि '' सोहं '' नाम सार है यानि मोक्ष मंत्रों में विशेष है। अजपा जाप जो स्वांस-उस्वांस से जाप किया जाता है, वह अनादि है 

अर्थात् सनातन है। उसके जाप से हंस

(निर्मल भक्त) पार उतर जाता है यानि मोक्ष प्राप्त करता है। (40)


अंजन (माया) को मंजन (साफ) करो यानि नेक कमाई करो। कुल चाहिए यानि परम्परागत साधना जो शास्त्र विरूद्ध है, उसे दूर करो यानि बलिदान दो। भावार्थ है कि संसारिक सम्पत्ति से मन हटाकर परम्परागत साधना त्याग दो। साहेब (भगवान) के साथ हिल खेलना यानि भक्ति में लगे रहो। उसकी निराकार शक्ति सब जगह परिपूर्ण (भरपूर) है। (41)


◆ भगवान का मुजरा (यहां स्तुति को मुजरा कहा गया है) दिल से दो। यह तत यानि सार है, इसे बार-बार करते रहो। इस प्रकार परमात्मा की स्तुति व भक्ति से कुबुद्धि यानि दुर्मति नष्ट हो जाती है। घान नामी घनसार का अर्थ है कि सुप्रसिद्ध भक्त हो जाएगा और भक्ति

का धनी (दास) वाला सत्यलोक को चला जाएगा। (42)


◆ अजब = अनोखा, हजारा = हजारों पत्ते वाला, पुहुप = फूल, निहगंडी = विशेष महक वाला है, गलतान = उसका महक के प्रभाव से साधक गलतान यानि मस्त हो जाता है। उस सतलोक में पाँच तत्व से निर्मित कोई वस्तु नहीं है। वह निर्भय पद है, प्रवान है यानि पूर्ण मोक्ष पद है जहाँ भक्त जन्म-मरण-जरा और कर्मदण्ड से मुक्त होकर निर्भय हो जाते है। (43)


◆ पूर्ण परमात्मा सर्व का धनी यानि मालिक है, उसको सतपुरूष कहते हैं कि वह अकाल यानि निर्बन्ध है और अमान यानि शांत है। उस पूर्ण देव कबीर जी का सतलोक स्थान हम को प्राप्त हुआ है। (44)


◆ नेस का अर्थ इस वाणी में अदृश्य शक्ति है। नेस का अर्थ नष्ट करना भी होता है।

यह वाणी के बोलने के भाव पर निर्भर करता है। नेस यानि परमात्मा की निराकार शक्ति निरंतर कण-कण में समाई है। उसको प्रकट कैसे दिखाऊं? संत गरीब दास जी ने कहा है कि यह गलतान पद यानि सुख दायक स्थान है जहाँ साधक जाय मस्त हो जाता है। वह खुशी भक्त में सामान्य रूप से प्रवेश हो जाता है। किको सिद्धियाँ आदि दिखाने की आवश्यकता नहीं है। (45)


स्वामी रामदेवानंद गुरू महाराज जी की असीम कृपा से '' पतिव्रता के अंग ''

का सरलार्थ सम्पूर्ण हुआ।


   .रात साहेब ।।


क्रमशः ____________

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