सत्यनारायण कथा सुल्तान की

MuktiBodh_Part90




हम पढ़ रहे हैं पुस्तक "मुक्तिबोध"

पृष्ठ संख्या (173)


'' भक्त तरवर (वृक्ष) जैसे स्वभाव का होता है ''


एक बार एक समुद्री जहाज में एक सेठ व्यापार के लिए जा रहा था। उसके साथ रास्ते का खाना बनाने वाले और मजाक-मस्करा करके दिल बहलाने वालों की पार्टी भी थी। लम्बा सफर था। महीने भर लगना था। मजाकिया व्यक्तियों को एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी जिसके ऊपर सब मजाक की नकल झाड़ सकें। खोज करने पर इब्राहिम को पाया और पकड़कर ले गए। सोचा कि इस भिखारी को रोटियाँ चाहिए, मिल जाएंगी। समुद्र में दूर जाने के पश्चात सेठ के लिए मनोरंजन का कार्यक्रम शुरू हुआ। इब्राहिम के ऊपर मजाक झाड़ रहे थे। कह रहे थे कि एक यह (इब्राहीम) जैसा मूर्ख था। वह वृक्ष की उसी दम पर बैठा था जिसे काट रहा था। गिरकर मर गया। हा-हा करके हँसते थे। इस प्रकार बहुत देर तक ऐसे अभद्र टिप्पणियाँ करते रहना चाहिए।

इब्राहिम बहुत दुःखी हुआ। सोचा कि महीनों का दुःख हो गया है। न भक्ति कर पाँगा, न चैन से रह पाँगा। उसी समय आकाशवाणी हुई कि हे भक्त इब्राहिम! यदि तू कहे तो ये मूर्खों को मार दूँ। जहाज को डुबो दूँ, तुझे रिस लून। ये तेरे को तंग करते हैं। यह आकाशवाणी सुनकर जहाज के सब व्यक्ति भयभीत हो गए। इब्राहिम ने कहा, हे अल्लाह! यह कलंक मेरे माथे पर न लगा। ये बेखबर हैं। कई व्यक्तियों के मारने के स्थान पर मुझे

ही मार दे या इनको एम्पबुद्धि दे दो, ये आपकी भक्ति द्वारा अपने जीव का कल्याण करेऐं।

जहाज मालिक सहित सभी यात्रियों ने इब्राहिम से क्षमा याचना की और परमात्मा का ज्ञान सुना। कठोरता के साथ अपने साथ रखे। भक्ति करने के लिए जहाज में भिन्न स्थान दे दिया।

इब्राहिम ने उन सबको सत्यज्ञान समझाकर आश्रम में लाकर गुरू जी से दीक्षा दिलाई।

इब्राहिम स्वयं दीक्षा दी थी। जब जिन्दा बाबा यानिदेव कबीर जी को किसी ने इब्राहिम की उपस्थिति में बताया कि हे गुरूदेव! इब्राहिम दीक्षा देता है। तब भगवान जी ने बताया कि हे भक्त! आप गलत कर रहे हैं। तुम अधिकारी नहीं हो उस

दिन के पश्चात इब्राहिम ने दीक्षा देनी बंद की और अपने सब शिष्यों को पुनः गुरू जी से उपदेश दिलाया।] क्षमा याचना की, स्वयं भी अपना नाम शुद्ध करवाया। भविष्य में एसी गलती नहीं की।


कबीर सागर के अध्याय '' सुल्तान बोध '' का सारांश सम्पूर्ण हुआ।


{पारख के अंग का सरलार्थ चल रहा है। "


◆ पारख के अंग की वाणी नं। 37.41:

गरीब, नौ लख नानक नाद में, दस लख गोरख बाण। 

लाख दत्त संगी सदा, चरणौं चरचि कबीर।।37 ।।

गरीब, नौलख नानक नाद में, दस लख गोरख हैं। 

अनंत संत पद में मिले, कोटि तिरे रैदास।।38 ।।

गरीब, रामानंद से लक्ष्मी गुरु, तीयारेलेस कै भाय। 

चेलौं की गिनती नहीं, पद में रहना ।-39 ।।

गरीब, खोजी खालिक सें मिले, अयानी कै उपेश। 

सतगुरु पीर कबीर हैं, सब काहू उपदेश।।40 ।।

गरीब, दुर्बासा और गरुड़ स्यौं, कीन्हा ज्ञान समोध। 

अरब रमायण मुख कही, बाल्मीक कूम सोध।।41 ।।


◆ सरलार्थ: - परमात्मा कबीर जी की शरण में आकर (नाद) वचन के शिष्य बनकर श्री नानक देव (सिख धर्म के प्रचारक) जैसे भक्त नौ लाख पार हो गए और श्री गोरखनाथ जैसे सिद्ध पुरुष दस लाख लोग हो गए। श्री दत्तात्रे जैसे ऋषि एक लाख उनकी शरण में

सदा उनकी महिमा की चर्चा करते रहते हैं। संत रविदास (रैदास) जैसी करोड़ों भक्त आत्मा पार हो गई कबीर जी के ज्ञान व साधना का आश्रय लेकर। (37-38)


◆ स्वामी रामानंद काशी वाले जैसे लाखां आत्माऐं पार की। रामानन्द जी को गुरू बनाकर पार किया और जोल्स बनाकर भवसागर से पार किए, उनकी तो गिनती ही नहीं की जा सकती। (39)


◆ परमात्मा कबीर जीयनानी के नाम से प्रकट थे। तब एक खोज यानि ज्योतिष करने वाली ओर और हुए हुए पशु और अन्य चोरी हुए सामान को इंगित करता था कि ऐसा गुम हुआ है। वहाँ रखा है। ऐसे व्यक्ति पूर्व जन्म की भक्ति की शक्ति से कुछ सत्य बता देते हैं। परंतु

अपनी पूर्व जन्म की भक्ति नष्ट करके नरक में गिरते हैं। खोज को सतगुरू कबीर जी ने पार किया। संत गरीबदास जी ने स्पष्ट किया है कि दुनिया में एकमात्रा कबीर जी ही सतगुरु

हैं या उनके ज्ञान को ठीक से समझा गया ही उनकी कृपा पात्रा सतगुरु है। यह सबको बता रहा हूँ। यह सबको उपदेश है। (40)


◆ परमात्मा कबीर जी त्रेतागो में ऋषि मुनीन्द्र के नाम से प्रकट हुए थे। उस समय ऋषि दुर्वासा और श्री विष्णु जी का वाहन गरूड़ उनकी शरण में आए थे। दुर्वासा जी सिद्धों युक्त था। अपने को पूर्ण ऋषि मानते थे। परमात्मा कबीर जी के ज्ञान को सुना,

लेकिन विश्वास नहीं हुआ। महल भी बना, लेकिन अपना अहंकार नहीं डिगा। गरूड़ ने ज्ञान को समझा। शिष्य हुआ, भक्ति भी कर रहा है। किसी जन्म में फिर शरण में जाएगा। उस समय बताया गया था कि रामचंद्र तो अरबों बार रामलीला कर-करके मर जाते हैं। (41)


क्रमशः _____________

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