" राजा बलि की आध्यात्मिक कथा " काल ब्रह्म का छुपा ज्ञान"
वाणी :-
परसुराम बावन अवतारा।
कोई ना जाने भेद तुम्हारा।।
१- सरलार्थ :- परसुराम जी ने पृथ्वी के सब अभिमानी क्षत्रियों को फरसे से (लाठी के एक सिरे पर लोहे का गंडासा जड़ा होता है, जिसका आकार उस समय 3 फुट लम्बा, एक फुट चौड़ा और 2 इंच मोटा था, सामने का तीन फुट लम्बाई वाला पैनी धार वाला चाकू की तरह था, उससे) काटकर मारा था। श्री परसुराम जी को श्री विष्णु जी का अवतार माना गया है। इसलिए कहा है कि आप ने परसुराम तथा बामन रूप में अवतार लिया। आपके भेव (भेद) अर्थात् रहस्य को कोई नहीं जान सका।
२- बामन अवतार :- भक्त प्रहलाद का पुत्र बैलोचन हुआ तथा बैलोचन का पुत्र राजा बली हुआ। राजा बली ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया। इन्द्र की गद्दी प्राप्त करने के लिए सौ मन घी एक यज्ञ में खर्च करना होता है जिसमें हवन तथा भण्डारा करना होता है। ऐसी-ऐसी सौ निर्बाध यज्ञ करने के पश्चात् वर्तमान इन्द्र को तख्त (गद्दी) से हटा दिया जाता है और जिसने नई साधना पूरी कर ली, उसको इन्द्र की गद्दी दी जाती है। इन्द्र स्वर्ग लोक का राजा होता है। गद्दी पर विराजमान इन्द्र के लिए शर्त होती है कि यदि उसके शासनकाल में किसी ने निर्बाध सौ अश्वमेघ यज्ञ पूरी कर दी तो गद्दी पर विराजमान इन्द्र को पद से उतारकर नया इन्द्र (स्वर्ग का राजा) नियुक्त किया जाता है। इसलिए पद पर विराजमान इन्द्र (स्वर्ग लोक के राजा) को चिंता लगी रहती है कि कोई उसके पद को प्राप्त न कर ले। इसलिए इन्द्र अपने नौकर-नौकरानी या देवी आदि को भेजकर इन्द्र प्राप्ति के लिए की जा रही यज्ञ को खण्डित करा देता है, परंतु राजा बली की 99 यज्ञ निर्बाध पूर्ण हो गई। इन्द्र उसमें बाधा उत्पन्न नहीं कर पाया। जब सौवीं यज्ञ प्रारम्भ की तो इन्द्र का सिहांसन (तख्त) डोल गया। इन्द्र स्वयं चलकर भगवान विष्णु जी के पास गया और विनय की कि हे प्रभु! आपने मुझे इन्द्र की गद्दी पर बैठाया था। अब मेरा राज जाने वाला है। मेरे राज की रक्षा आपके हाथ में है। पृथ्वी राजा बली 100वीं (सौवीं) यज्ञ सम्पूर्ण करने जा रहा है। कृप्या उसका यज्ञ खण्ड कराओ। श्री विष्णु जी ने कहा कि आप निश्चिंत होकर राज्य करो, मैं कोई उपाय करता हूँ। श्री विष्णु जी ने इन्द्र को वचन तो दे दिया, परंतु कोई उपाय नहीं निकल रहा था। श्री विष्णु जी भी परमात्मा से अर्ज करते हैं। तब पूर्ण परमात्मा एक बामन (बौना व्यक्ति) का रूप बनाकर ब्राह्मण वेश बनाकर यज्ञ स्थल पर पहुँचे। राजा बली ने सत्कारपूर्वक आसन दिया और भोजन कराया तथा दक्षिणा देने लगा तो बामन ब्राह्मण ने कहा कि पहले प्रतिज्ञा करो, जो मैं मांगू, आप दोगे। राजा बली ने प्रतिज्ञा कर ली। तब बामन ब्राह्मण ने कहा कि मुझे तीन कदम (तीन डंग) पृथ्वी दान दे दो बस। बली ने कहा, हे ब्राह्मण! आपने माँगा भी तो क्या माँगा? मैं तो आपको बहुत कुछ देता। बामन ब्राह्मण ने कहा कि मेरे भाग्य में यही लिखा होगा, तभी तो इतनी जुबान खुली। आप पृथ्वी दान करो। बली राजा लगा अपने पैरों से तीन कदम नापने। तब बामन वेश में प्रभु ने कहा कि आपके तीन कदम नहीं, मेरे तीन कदम पृथ्वी दे, मैं मापूँगा। यह वार्ता सुनकर राजा बली के धार्मिक गुरू शुक्राचार्य (शुक्राचार्य राक्षसों का गुरू माना जाता है) ने राजा बली को एक ओर ले जाकर कहा कि आप अपनी प्रतिज्ञा भंग कर दो। यह बामन रूप में विष्णु खड़े हैं, ये इन्द्र के कहने से छल कर रहे हैं, परंतु बली राजा बोला, गुरूवर! जब भगवान भिखारी बनकर आया है और मैं दान ना करूँ तो मेरे जैसा अपराधी पृथ्वी पर नहीं होगा। इन्हीं के पृथ्वी इन्हीं को देने से मना करना महादुष्ट व्यक्ति का कार्य है। वह आपका शिष्य नहीं कर सकता क्योंकि शास्त्रों में कहा है कि यदि कोई किसी से वस्तु माँगकर प्रयोग कर रहा हो और स्वामी माँगे तो तुरंत दे देना चाहिए अन्यथा समाज में निंदा का पात्र बनता है। राजा बली ने कहा, माप लो स्थान विप्रजी! बामन भगवान इतने बढ़ गए कि आकाश को छूने लगे। एक डंग (कदम) से पूरी पृथ्वी माप दी और दूसरी डंग से अन्य दोनों लोकों (स्वर्ग तथा पाताल) को माप दिया और कहा कि एक डंग (कदम) शेष है, इसको कहाँ रखू? राजा बली बोला, भगवन! मेरी पीठ पर रख लो। संतों ने शरीर को पिण्ड तथा ब्रह्माण्ड भी कहा है। यह कहकर बली भक्त पेट के बल पृथ्वी पर लेट गया। उसी समय पूर्ण परमात्मा ने सामान्य नर रूप धारण किया और एक घण्टे तक सत्संग किया तथा समझाया कि इन्द्र का राज्य 72 चतुर्युग तक रहता है। श्री ब्रह्मा जी का एक दिन 1008 (एक हजार आठ) चतुर्युग का होता है जिसमें 14 साधक इन्द्र का शासन करके मृत्यु के उपरांत गधे का जीवन भोगते हैं। जिनको गुरू पूर्ण नहीं मिलते, वे भक्त ही ऐसी घटिया साधना करके अपना मानव जीवन व्यर्थ करके पाश्चाताप करते हैं जब धर्मराज के दरबार में उनको गधा बनकर पृथ्वी पर जाने का आदेश मिलता है। पूर्ण मोक्ष के लिए साधना करनी चाहिए जिससे जन्म-मरण सदा के लिए समाप्त हो जाता है। वेदों में प्रमाण है कि तत्वज्ञानी संत की खोज करके वह साधना करनी चाहिए जिससे परमात्मा का वह परम पद प्राप्त होता है जहाँ जाने के पश्चात्-साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आते। उस स्थान पर इन्द्र के स्वर्ग से करोड़ों गुणा सुख है, ऐश्वर्य है। वहाँ पर वृद्धावस्था नहीं है। वहाँ मृत्यु नहीं होती। सदा युवा शरीर रहता है। इस प्रकार सत्संग सुनाने के पश्चात् परमात्मा ने कहा कि हे बली भक्त! मैं आपकी भक्ति तथा समर्पण भाव से प्रसन्न हूँ। चल तुझे पाताल लोक का राज्य देता हूँ। वर्तमान इन्द्र को अपना शासन पूरा करने दे। फिर तेरे को इन्द्र की पदवी दी जाएगी। बली ने कहा हे प्रभु! आपने ऐसा ज्ञान सुना दिया, अब तो तीनों लोकों के राज्य की भी चाह नहीं रही। मुझे तो वह परम स्थान प्राप्त करा दो जहाँ जाने के पश्चात् फिर कभी संसार में लौटकर नहीं आते। भगवान बोले, वह भक्ति मार्ग बताने वाला कोई संत मिले, उससे दीक्षा लेकर भक्ति करना। अब तो आपको पाताल का राजा बनाता हूँ क्योंकि जो भक्ति आपने की है, इस लोक का विधान है कि जैसा कर्म किया, वैसा अवश्य भोगना पड़ेगा। इतना कहकर परमात्मा अंतर्ध्यान हो गए। इन्द्र की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। इन्द्र भगवान विष्णु का धन्यवाद करने विष्णु जी के लोक में गया तो भगवान विष्णु अभी समस्या का हल खोज रहे थे। इन्द्र को आते देखकर श्री विष्णु ने सोचा कि इन्द्र फिर से आ गया सहायता के लिए, बात समझ से बाहर है। कैसे यज्ञ खण्ड की जाए? इन्द्र ने दण्डवत् प्रणाम किया और अपनी गद्दी की रक्षा करने के लिए धन्यवाद किया। इन्द्र ने बताया भगवान आपका बामन रूप बहुत सुन्दर था। जब आपने अपना शरीर दीर्घ किया तो आसमान को छू रहा था। आपने दो कदमों से तीनों लोक नाप दिए, आपकी महिमा अपरमपार है। बली को पाताल का राजा बनाकर आपने मेरी गद्दी की रक्षा कर दी। आपका धन्यवाद।
📕 पाठकों से निवेदन है कि जैसा पूर्व में उदाहरण दिया है, लड़के का मूसल उठाने की जिद तथा मानना कि मैं ही मूसल उठा रहा हूँ। अन्य भी जो देखते हैं, वे भी उस 1.5 वर्ष के लड़के की प्रशंसा करते हैं कि वाह-भाई-वाह! लड़के ने इतना भारी (वजनदार) मूसल उठा रखा है। यदि सच्चाई बताएं कि उठा तो दादा जी रहा है तो वह बच्चा रोने लगे या दादा जी से मूसल छोड़ने की जिद करके चोट खाएगा। यही दशा इन भगवानों की जानों। इसलिए यही कहने में सब ठीक है कि हे विष्णु जी! आपने परशुराम तथा बामन रूप धारण करके लीला की आप का रहस्य कोई नहीं जानता।
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