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"गंगा जी कहां से प्रकट होती हैं"

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लोगों का मानना है कि भागीरथ ने गंगा को जमीन पर उतारा था !  लेकिन यह गलत उत्तर समाज में मिला  सही उत्तर जानने के लिए पोस्ट को अवश्य पढ़ें  👇👇 गंगा जी कहां से प्रकट होती है? गंगा जी का इस पृथ्वी पर क्यों आना हुआ? गंगा जी का जल क्यों नहीं खराब होता है? गंगा जी के जल से नहाने से क्या पाप धुल जाते ?हैं  ? अनेक सवालों के जवाब जानने के लिए आप नीचे दिए गए लिंक को क्लिक करके अवश्य पढ़ें दोस्तों अनमोल ज्ञान प्राप्त करने के लिए नीचे दिए गए लिंक को अवश्य पढ़ें और जाने गंगा जी के सरलार्थ उत्तर इंग्लिश में मैसेज पढ़ने के लिए आप नीचे दी गई लिंक को क्लिक करें 👇👇👇 https://news.jagatgururampalji.org/origin-of-ganga-river/ हिंदी में गंगा जी सरलार्थ जाने के लिए नीचे दिए गए लिंक को क्लिक करके पढ़ें 👇👇 https://www.google.com/amp/s/news.jagatgururampalji.org/ganga-river-story-in-hindi/amp/ हिंदी में पुस्तक प्राप्त करने के लिए नीचे दिए गए व्हाट्सएप नंबर पर s.m.s. करें अंग्रेजी में पुस्तक प्राप्त करने के लिए नीचे दिए गए नंबर पर SMS करें 👇👇  संत रामपाल जी महाराज का ज्ञान ग्रहण करने के लिए संत रामपाल जी

सत शास्त्र अनुकूल साधना भक्ति विधि यूट्यूब लिंक

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"  शास्त्र अनुकूल साधना भक्ति मार्ग विधि  " संत रामपाल जी महाराज व संत रामपाल जी महाराज के भक्तों का नारा है 👇👇👇 जीव हमारी जाति है मानव धर्म हमारा हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई धर्म नहीं कोई न्यारा।। होली, दीपावली, रक्षाबंधन, करवा चौथ, मकर संक्रांति , गणतंत्र दिवस , रोजा नमाज, ईद बकरीद, क्रिसमस डे व अन्य कोई पर्व किसी भी धर्म विशेष पर विशेष मंथन करें और विचार करें कि यह पर्व हमारे लिए क्या खास बनता है ! "भक्ति साधना करने वाली प्यारी आत्माओं से प्रार्थना है कि संत रामपाल जी महाराज के सत्संग अमृत वचन जरूर सुनें " कोई भी व्रत त्यौहार रखने से सुख शांति प्राप्त होती है या नहीं ? पति व्रत रखने से क्या शांति प्राप्त होगी ? क्या पति की उम्र बढ़ जाती है ? इन सभी प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए ज्ञान गंगा पुस्तक को पढ़ें "  नोट :- अल्लाह परमेश्वर को मानने वाले भी शास्त्र विघि साधना करें और कोई भी व्रत त्योहार रोजा नमाज रखने से पहले आवश्यक जानकारी संत रामपाल जी से प्राप्त करें " 👇👇 श्रीमद भगवत गीता अध्याय 16 श्लोक 23, 24 के अनुसार शास्त्र अनुकूल साधना करने से मनुष्य को

" राजा बलि की आध्यात्मिक कथा " काल ब्रह्म का छुपा ज्ञान"

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वाणी :- परसुराम बावन अवतारा। कोई ना जाने भेद तुम्हारा।। १- सरलार्थ :- परसुराम जी ने पृथ्वी के सब अभिमानी क्षत्रियों को फरसे से (लाठी के एक सिरे पर लोहे का गंडासा जड़ा होता है, जिसका आकार उस समय 3 फुट लम्बा, एक फुट चौड़ा और 2 इंच मोटा था, सामने का तीन फुट लम्बाई वाला पैनी धार वाला चाकू की तरह था, उससे) काटकर मारा था। श्री परसुराम जी को श्री विष्णु जी का अवतार माना गया है। इसलिए कहा है कि आप ने परसुराम तथा बामन रूप में अवतार लिया। आपके भेव (भेद) अर्थात् रहस्य को कोई नहीं जान सका। २- बामन अवतार :- भक्त प्रहलाद का पुत्र बैलोचन हुआ तथा बैलोचन का पुत्र राजा बली हुआ। राजा बली ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया। इन्द्र की गद्दी प्राप्त करने के लिए सौ मन घी एक यज्ञ में खर्च करना होता है जिसमें हवन तथा भण्डारा करना होता है। ऐसी-ऐसी सौ निर्बाध यज्ञ करने के पश्चात् वर्तमान इन्द्र को तख्त (गद्दी) से हटा दिया जाता है और जिसने नई साधना पूरी कर ली, उसको इन्द्र की गद्दी दी जाती है। इन्द्र स्वर्ग लोक का राजा होता है। गद्दी पर विराजमान इन्द्र के लिए शर्त होती है कि यदि उसके शासनकाल में किसी ने निर्बाध सौ अश्व

भक्ति मुक्ति बोध

 #कबीरसागर_का_सरलार्थPart_5 प्रश्न :- (धर्मदास जी का) गीता तथा वेदों में यह कहाँ प्रमाण है कि पूर्ण मोक्ष मार्ग तत्त्वदर्शी सन्त के पास ही होता है, वेदों व गीता में नहीं है। हे प्रभु जिन्दा! मेरी शंका का समाधान कीजिए, आपका ज्ञान हृदय को छूता है, सत्य भी है परन्तु विश्वास तो प्रत्यक्ष प्रमाण देखकर ही होता है। उत्तर :- (जिन्दा परमेश्वर जी का) गीता अध्याय 4 श्लोक 25 से 30 में गीता ज्ञान दाता ने बताया है कि हे अर्जुन! सर्व साधक अपनी साधना व भक्ति को पापनाश करने वाली अर्थात् मोक्षदायक जान कर ही करते हैं। यदि उनको यह निश्चय न हो कि तुम जो भक्ति कर रहे हो, यह शास्त्रानुकुल नहीं है तो वे साधना ही छोड़ देते। जैसे कई साधक देवताओं की पूजा रुपी यज्ञ अर्थात् धार्मिक अनुष्ठान करके ही पूजा मानते हैं। अन्य ब्रह्म तक ही पूजा करते हैं। कई केवल अग्नि में घृत आदि डालकर अनुष्ठान करते हैं जिसको हवन कहते हैं। (गीता अध्याय 4 श्लोक 25) अन्य योगीजन अर्थात् भक्तजन आँख, कान, मुहँ बन्द करके क्रियाएं करते हैं। उसी में अपना मानव जीवन हवन अर्थात् समाप्त करते हैं। (गीता अध्याय 4 श्लोक 26) अन्य योगीजन अर्थात् भक्तज

सत्यनारायण कथा सुल्तान की

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MuktiBodh_Part90 हम पढ़ रहे हैं पुस्तक "मुक्तिबोध" पृष्ठ संख्या (173) '' भक्त तरवर (वृक्ष) जैसे स्वभाव का होता है '' एक बार एक समुद्री जहाज में एक सेठ व्यापार के लिए जा रहा था। उसके साथ रास्ते का खाना बनाने वाले और मजाक-मस्करा करके दिल बहलाने वालों की पार्टी भी थी। लम्बा सफर था। महीने भर लगना था। मजाकिया व्यक्तियों को एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी जिसके ऊपर सब मजाक की नकल झाड़ सकें। खोज करने पर इब्राहिम को पाया और पकड़कर ले गए। सोचा कि इस भिखारी को रोटियाँ चाहिए, मिल जाएंगी। समुद्र में दूर जाने के पश्चात सेठ के लिए मनोरंजन का कार्यक्रम शुरू हुआ। इब्राहिम के ऊपर मजाक झाड़ रहे थे। कह रहे थे कि एक यह (इब्राहीम) जैसा मूर्ख था। वह वृक्ष की उसी दम पर बैठा था जिसे काट रहा था। गिरकर मर गया। हा-हा करके हँसते थे। इस प्रकार बहुत देर तक ऐसे अभद्र टिप्पणियाँ करते रहना चाहिए। इब्राहिम बहुत दुःखी हुआ। सोचा कि महीनों का दुःख हो गया है। न भक्ति कर पाँगा, न चैन से रह पाँगा। उसी समय आकाशवाणी हुई कि हे भक्त इब्राहिम! यदि तू कहे तो ये मूर्खों को मार दूँ। जहाज को डुबो दूँ, तुझे रिस

पारख के अंग (भक्ति मार्ग प्रभु पाने का रास्ता)

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फेसबुक पर " मुक्ति बोध" सर्च करें 🤳🤳 📖📖📖 #MuktiBodh_Part71 हम पढ़ रहे है मुक्तिबोध पुस्तक पेज (135-136) ‘‘पारख के अंग का सरलार्थ’’ सारांश :- पारख का अर्थ परख यानि जाँच-पहचान। परमात्मा का पारख (पहचान) इस पारख के अंग में है। इस पारख के अंग में परमात्मा कबीर जी की समर्थता बताई है। परमात्मा की परख उसकी शक्ति-समर्थता से होती है। जैसे परमात्मा कबीर जी के विषय में इस अंग में लिखा है कि कबीर परमात्मा प्रत्येक युग में सशरीर आते हैं। कभी बालक रूप धारण करके अपना ज्ञान समझाते हैं। कभी किसी साधु-संत जिंदा बाबा का वेश बनाकर अच्छी आत्माओं को तत्वज्ञान समझाते हैं। उनको मिलते हैं। संत धर्मदास जी को मिले। उनको तत्वज्ञान समझाया। वे श्री राम तथा श्री कृष्ण यानि विष्णु जी से ऊपर कोई प्रभु नहीं मानते थे। तत्वज्ञान समझाया। सतलोक में अपना वास्तविक स्थान व सिंहासन दिखाया। तब धनी धर्मदास जी को पारख हुआ कि पूर्ण परमात्मा कबीर बंदी छोड़ जी ही हैं। सशरीर प्रकट होने के विषय में संत गरीबदास जी ने यथार्थ वर्णन किया है जो कबीर सागर से भी मेल करता है कि परमात्मा कबीर जी चारों युगों में सशरीर भिन्न-भिन्न न

मुक्तिबोध (आत्मा का भ्रमण )

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   फेसबुक पर सर्च करें 📲  मुक्ति बोध🤳  मुक्तिबोध_पार्ट 69 के आगे पढिए ... 📖📖 MuktiBodh_Part70 हम पढ़ रहे है पुस्तक "  मुक्तिबोध " पृष्ठ संख्या (132-134) शब्द = हाथ, बरंर = भँवरा, जो काला भूंड जैसा होता है। फूलों पर बैठकर सुगंध लेता है। बेली = बेल यानि लता, पुहुप = पुष्प, फूल, पग = पैर, पंथ = मार्ग, चोनर = चंवर जो गाय की दुम जैसे बालों वाला होता है जो संतों और शिग्रंथों के ऊपर हाथ रखा जाता है: है। वह सतलोक में बिना हाथ के अपने आप चलता रहता है। आसन = बैठने के लिए कपड़ा, गद्दा या कुर्सी को आसन कहते हैं। सतलोक में बिना जीभ के भी बोल सकते हैं जैसे आकाशवाणी होती है। मंदिर = महल, देहरा = देवालय जिसमें भगवान रहते हैं। इन संपत्तियों में सतलोक में अनहोनी लीलाओं का ज्ञान है। वैसे ही पर स्थाई मकान हैं, बाग हैं, झरने बहते हैं। अंग = शरीर जो पाँच तत्व का है, वह नहीं है। वहाँ अनूप यानि विचित्रा शरीर है। दृष्टि = नजर, मुश्ती = विशेष ध्यान से देखने की कोशिश, दृष्टि तो सामान्य नजर होती है। जो नजर गड़ाकर ध्यान से देखें, वह मुशी कही जाती है। रहत = बिना, सेव = पूजा। भावार्थ है कि उस परमात्मा