Posts

Showing posts from October, 2020

सत्यनारायण कथा सुल्तान की

Image
MuktiBodh_Part90 हम पढ़ रहे हैं पुस्तक "मुक्तिबोध" पृष्ठ संख्या (173) '' भक्त तरवर (वृक्ष) जैसे स्वभाव का होता है '' एक बार एक समुद्री जहाज में एक सेठ व्यापार के लिए जा रहा था। उसके साथ रास्ते का खाना बनाने वाले और मजाक-मस्करा करके दिल बहलाने वालों की पार्टी भी थी। लम्बा सफर था। महीने भर लगना था। मजाकिया व्यक्तियों को एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी जिसके ऊपर सब मजाक की नकल झाड़ सकें। खोज करने पर इब्राहिम को पाया और पकड़कर ले गए। सोचा कि इस भिखारी को रोटियाँ चाहिए, मिल जाएंगी। समुद्र में दूर जाने के पश्चात सेठ के लिए मनोरंजन का कार्यक्रम शुरू हुआ। इब्राहिम के ऊपर मजाक झाड़ रहे थे। कह रहे थे कि एक यह (इब्राहीम) जैसा मूर्ख था। वह वृक्ष की उसी दम पर बैठा था जिसे काट रहा था। गिरकर मर गया। हा-हा करके हँसते थे। इस प्रकार बहुत देर तक ऐसे अभद्र टिप्पणियाँ करते रहना चाहिए। इब्राहिम बहुत दुःखी हुआ। सोचा कि महीनों का दुःख हो गया है। न भक्ति कर पाँगा, न चैन से रह पाँगा। उसी समय आकाशवाणी हुई कि हे भक्त इब्राहिम! यदि तू कहे तो ये मूर्खों को मार दूँ। जहाज को डुबो दूँ, तुझे रिस...

पारख के अंग (भक्ति मार्ग प्रभु पाने का रास्ता)

Image
फेसबुक पर " मुक्ति बोध" सर्च करें 🤳🤳 📖📖📖 #MuktiBodh_Part71 हम पढ़ रहे है मुक्तिबोध पुस्तक पेज (135-136) ‘‘पारख के अंग का सरलार्थ’’ सारांश :- पारख का अर्थ परख यानि जाँच-पहचान। परमात्मा का पारख (पहचान) इस पारख के अंग में है। इस पारख के अंग में परमात्मा कबीर जी की समर्थता बताई है। परमात्मा की परख उसकी शक्ति-समर्थता से होती है। जैसे परमात्मा कबीर जी के विषय में इस अंग में लिखा है कि कबीर परमात्मा प्रत्येक युग में सशरीर आते हैं। कभी बालक रूप धारण करके अपना ज्ञान समझाते हैं। कभी किसी साधु-संत जिंदा बाबा का वेश बनाकर अच्छी आत्माओं को तत्वज्ञान समझाते हैं। उनको मिलते हैं। संत धर्मदास जी को मिले। उनको तत्वज्ञान समझाया। वे श्री राम तथा श्री कृष्ण यानि विष्णु जी से ऊपर कोई प्रभु नहीं मानते थे। तत्वज्ञान समझाया। सतलोक में अपना वास्तविक स्थान व सिंहासन दिखाया। तब धनी धर्मदास जी को पारख हुआ कि पूर्ण परमात्मा कबीर बंदी छोड़ जी ही हैं। सशरीर प्रकट होने के विषय में संत गरीबदास जी ने यथार्थ वर्णन किया है जो कबीर सागर से भी मेल करता है कि परमात्मा कबीर जी चारों युगों में सशरीर भिन्न-भिन्न न...

मुक्तिबोध (आत्मा का भ्रमण )

Image
   फेसबुक पर सर्च करें 📲  मुक्ति बोध🤳  मुक्तिबोध_पार्ट 69 के आगे पढिए ... 📖📖 MuktiBodh_Part70 हम पढ़ रहे है पुस्तक "  मुक्तिबोध " पृष्ठ संख्या (132-134) शब्द = हाथ, बरंर = भँवरा, जो काला भूंड जैसा होता है। फूलों पर बैठकर सुगंध लेता है। बेली = बेल यानि लता, पुहुप = पुष्प, फूल, पग = पैर, पंथ = मार्ग, चोनर = चंवर जो गाय की दुम जैसे बालों वाला होता है जो संतों और शिग्रंथों के ऊपर हाथ रखा जाता है: है। वह सतलोक में बिना हाथ के अपने आप चलता रहता है। आसन = बैठने के लिए कपड़ा, गद्दा या कुर्सी को आसन कहते हैं। सतलोक में बिना जीभ के भी बोल सकते हैं जैसे आकाशवाणी होती है। मंदिर = महल, देहरा = देवालय जिसमें भगवान रहते हैं। इन संपत्तियों में सतलोक में अनहोनी लीलाओं का ज्ञान है। वैसे ही पर स्थाई मकान हैं, बाग हैं, झरने बहते हैं। अंग = शरीर जो पाँच तत्व का है, वह नहीं है। वहाँ अनूप यानि विचित्रा शरीर है। दृष्टि = नजर, मुश्ती = विशेष ध्यान से देखने की कोशिश, दृष्टि तो सामान्य नजर होती है। जो नजर गड़ाकर ध्यान से देखें, वह मुशी कही जाती है। रहत = बिना, सेव = पूजा। भावार्थ है क...